हालांकि उनकी भाषा आम किन्नरों की तरह ही ठेंठ है. वह वैसी फूहड़ कही जानेवाली उपमा देती है और कहावत, मुहावरों का इस्तेमाल करतीं हैं जो सभ्य समाज के लोगों को नहीं पचे. उनका खास अंदाज में बात बिना बात के तालियां बजाना आपको नागवार लग सकता है, पर उनके काम को देख कर सोचना पड़ता है कि जिसे समाज ने हासिये पर डाल दिया, उसकी शारीरिक कमी को उपहास का शब्द बना दिया, उसमें समाज के प्रति इतना दर्द है तो क्यों.
वह है राजकुमारी. बोकारो के रितूडीह में रहती हैं. रितूडीह के लोगों की हर जरत के समय खड़ी होती है. समाज से मिले बधाई के पैसे से वह मौज नहीं करती. उसने तीन-तीन अनाथ कही जानेवाली लड़कियों को पाला. उन्हें बड़ा किया. उनकी शादियां रचायी. उनके तीनों दामाद भी बेरोजगार हैं.
उनका और उनके बच्चों का पालन-पोषण वह कर रही है. उनकी तीन बेटियों की तरह बेटा भी है. वह भी बेरोजगार है. नाती-पोते से भरा परिवार है. सबकी देखभाल वह करती है. सरकार से कुछ मदद नहीं लेतीं? सुनते ही वह भड़क जाती हैं. कहतीं हैं, कौना सरकार जी.. 12 साल होता झारखंड बनल, कतना-विधायक मिनिस्टर बनलन का भइल. सब कमा खा के लाल बाड़न. जनता बेहाल बिया. व्यवस्था पर चोट करती हैं.
कहती हैं, इहा के पुलिस के का कहब. केहू मार के ककरो कपार फोड़ देलस. पुलिस कपार फोड़ वाला के ना पकड़ी. जेकर कपार फूटल ओकरे धर के जेहल भेज दिही. लोग पानी बिना परेशान बा. केहू आवत नइखे. वोटवा के टैम आइ तऽ सब केहू आके दुआरी पर भीड़ लगा दिहन. राजकुमारी के तब सबके याद आवेला. देखीं तऽ पोतवा के स्कूल फीस बाकी बा. आठ हजार देवे पड़ी. एकर कौन ना तो टीबी भइल बा, बीजीएच में भरती करे पड़ी. पैसवा होई तब ना इ कुल्ही होई..का कहीं सैकड़ा में सूद पर पैसा लेले बानी, उहे भरत बानी.
- कई लड़कियों की शादी करायी : उसके पास बधाई के ही पैसे आते हैं. उन पैसों से वह जरत मंद की मदद करती हैं. कई शादियां करायी है. रितूडीह में बजरंग बली का मंदिर बनवाया है. यहां हर साल यज्ञ करवाती हैं. मकर संक्रांति के दिन पांच सौ साड़ियां, शॉल और कंबल गरीब-गुरबों को नियमित तौर पर बांटती हैं. खुद एक झोंपड़ी में रहती हैं. मामूली सूती साड़ी पहनती हैं.
इसके बाद जहां भी कोई समस्या होती हैं वहां जाती है. कई बार गुंडे-बदमाशों से सामना कर चुकी हैं. उनके सामाजिक कार्यो का परिणाम है कि आज उनके पीछे हजारों की संख्या में महिलाएं खड़ी होती हैं. उसने रीतूडीह से जिसे मुखिया बनाने के लिए लोगों से कहा वह जीता. मगर, राजकुमारी कहती हैं..इ तो महा बेईमान निकला जी. इहे तो रोना है, जो जीता उहे बेईमान. जनता का भगवाने मालिक है.
- कई सवाल इनके काम से -
* क्या सभ्य समाज के ठेकेदार वही होंगे जो बात तो उम्दा किस्म का करते हैं, अपने भाषण-आचरण से लोगों को प्रभावित कर जनता का प्रतिनिधि बनते हैं और राजकुमारी के शब्दों में वे बेईमान हो जाते हैं.
* क्या राजकुमारी जैसे लोगों को फूहड़ कह कर उनके समाज के प्रति योगदान को नकार देना चाहिए.
* क्या यह मानना सही होगा कि सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही समाज की भलाई की बात सोचा करते हैं. क्या वे रितूडीह जैसी झोंपड़ पट्टी में जाकर काम करना मुनासिब समझेंगे. यहां की भाषा, तौर-तरीके को वह मन से कबूल कर सकते हैं.
* क्या नेताओं और जन प्रतिनिधियों के बारे में राजकुमारी की बात का नोटिस लोग लेंगे.
(दैनिक जागरण से साभार )
(दैनिक जागरण से साभार )
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