आदिवासियों का पारंपरिक पर्व करमा आज पूरे उत्साह व उमंग के साथ पूरे झारखंड में मनाया गया। यह पारंपरिक पर्व हरियाली का प्रतीक है। इस दिन प्रकृति की पूजा की जाती है। आज अपने पारंपरिक परिधान में आदिवासी ढ़ोल व मांडर की थाप पर थिरकते हैं। इस अवसर पर बहनें अपने भाईयों की लंबी उम्र व महिलाएं अपने पति के लिए कामना करती हैं। बहनें अपने भाईयों के लिए सुख व समृद्धि की चाहत रखती हैं।
कल अपराह्न् में सभी लोग जुलूस की शक्ल में ढ़ोल-नगाड़ों के साथ पूजा स्थल पर गए। सबलोग प्रकृति के रंग में रंगे हुए थे। नाचते-गाते सड़कों पर उन्मुक्त मन से प्रकृति की पूजा की गयी। राजधानी रांची समेत झारखंड के अन्य जिलों में इस पर्व को लेकर खासा उत्साह बना होता है। जगह-जगह पर शानदार सजावट देखने को मिली , बच्चों में भी खासा उत्साह है।
जा जा हो करम गोसांई, जा छोवो मास।
आवोतो भादरो मास, आनोबो घुराय॥
देलियो गे करमइती, देलियो आसीस गे।
तोर भइया जीयोतो, राखोतो रीति गे॥
जैसे गीतों के साथ चास-बोकारो के देहाती इलाकों में करमा पर्व की धूम थी। रविवार की रात जागरण किया गया। बहनों ने भाई की लंबी उम्र के लिए रात भर करम डाली के पास पूजा-अर्चना की। वहीं करम गीतों से अखाड़ा को जगाए रखा। बहनों का साथ भाइयों ने भी दिया। मांदर की थाप पर सभी थिरके।
झारखंड में इस पर्व की अलग महत्ता है। परन्तु इस वर्ष मानसून के दगा देने के कारण किसानों में खुशी नहीं दिखी। किसानों ने पुरानी परंपरा के कारण करमा पर्व को मनाया जरूर परन्तु बार-बार आसमान की ओर ताककर अपने-आप को कोसते नजर आए। यहां करमा को जावा पर्व भी कहा जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के मधुर संबंध का प्रतीक है। झारखण्ड में इस दिन का बड़ा ही महत्व है। इस दिन बोये हुए बीज से उत्पन्न फसल रोगमुक्त और समृद्ध दिखती है।
वास्तव में करमा पर्व जीवन में कर्म के महत्व को बताता है। यह कर्म को पूजा-पाठ ओर धर्म से ऊपर रखता है। करमा पर्व विशुद्ध रूप से कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। उन्होंने कहा कि करमा भाई-बहन के बीच प्यार व स्नेह का भी प्रतीक है। करमा पूजन की विधि की चर्चा करते हुए श्री उरांव ने कहा की करम गाड़ने के बाद कोठवार द्वारा समुदाय के लोगों को करम कथा सुनने के लिए बुलाया जाता है। श्रोता एवं उपासर अपने-अपने करम दौड़ या थाली में पूजन सामग्री तेल, सिंदूर, धूप-धुवन, खीरा, चीउड़ा, जावा फूल, अरवा चावल, दूध, फूल, फल सजाकर इसमें दीपक जलाते है। इसके सारू पत्ते से ढककर अखाड़ा में लाते है और करम के चारों ओर बैठ जाते है। दूसरी ओर करम अखाड़ा में चारों ओर भेलवा, सखुआ या केंद इत्यादि लाकर खड़ा कर दिया जाता है। कथा अंत होने के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है। युवक-युवतियां करमा नृत्य संगीत प्रस्तुत करती है। दूसरे दिन सुबह भेलवा वृक्ष की टहनियों को धान की खेती में गाड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे फसल फसल में कीड़े नहीं लगते है। श्री उरांव ने कहा कि करमा अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग विश्वास एवं मान्यता के साथ मनाया जाता है।
- बहनों ने रखा नौ दिन तक व्रत
मनसा पूजा समाप्त होते ही करम गीत की शुरूआत हो जाती है। इस त्योहार में बहनें भादो माह के शुक्ल पक्ष में तृतीया से एकादशी तक व्रत रखती है। बांस की बनी छोटी-छोटी टोकरी जिसे कुड़माली में 'टुपा-डाली' कहते है। इसे लेकर युवतियां जलाशय, झरना, नदी अथवा तालाब में जाकर स्नान के बाद बालू भरकर उसमें नौ तरह के तेलहन-दलहन के बीजों को बोती हैं। डाला के बीचों-बीच एक सखुआ की खूंटी गांव के मालिक महतो परिवार की युवती गाड़ती है। इस खूंटी को मूल खूंटी (महतो खूंटी) के नाम से जाना जाता है। डाला के मूल खूंटी के चारों ओर अधिक-से-अधिक नौ खूंटी गाड़ी जाती है। जो नवग्रह एवं बीच की खूंटी को सूर्य का प्रतीक माना जाता है। नदी के किनारे से गांव के करम अखाड़ा तक आते वक्त नौ स्थान पर इस डाला को रख कर चारों ओर से नाच-नाच कर युवतियां करम गीत गाती है।
- 'नाया' ने गाड़ी करम डाली
व्रत करने वाली नवयुवती एवं महिलाएं दूध, दही, गुड़, नमक एवं साग नहीं खाती है। एकादशी की रात में एक करम पेड़ की डाली को करम अखाड़ा में गांव के 'नाया' ने गाड़ा। वहीं रात को महिला-पुरुष, युवक-युवतियां नाच-गान के द्वारा अखाड़ा को जगाए रखा। करम डाली से बहन अपने भाई के दीर्घायु होने की कामना को लेकर दोड़ी एवं बेना से निर्मित अतिसुन्दर कांगन करम डाली में बांधा। आज इस कंगन को भाई के बांहों में बांधा जाएगा।
-आज होगा जावा डाली का विसर्जन
रात भर अखाड़ा को जगाए रखने के बाद आज द्वादश की सुबह बहनें विभिन्न गीतों के साथ जावा डाली का विसर्जन करेगी। बहनें अपने-अपने क्षेत्र के जलाशयों में विसर्जन करने के बाद व्रत तोड़ेगी।
( जागरण से साभार )
कल अपराह्न् में सभी लोग जुलूस की शक्ल में ढ़ोल-नगाड़ों के साथ पूजा स्थल पर गए। सबलोग प्रकृति के रंग में रंगे हुए थे। नाचते-गाते सड़कों पर उन्मुक्त मन से प्रकृति की पूजा की गयी। राजधानी रांची समेत झारखंड के अन्य जिलों में इस पर्व को लेकर खासा उत्साह बना होता है। जगह-जगह पर शानदार सजावट देखने को मिली , बच्चों में भी खासा उत्साह है।
जा जा हो करम गोसांई, जा छोवो मास।
आवोतो भादरो मास, आनोबो घुराय॥
देलियो गे करमइती, देलियो आसीस गे।
तोर भइया जीयोतो, राखोतो रीति गे॥
जैसे गीतों के साथ चास-बोकारो के देहाती इलाकों में करमा पर्व की धूम थी। रविवार की रात जागरण किया गया। बहनों ने भाई की लंबी उम्र के लिए रात भर करम डाली के पास पूजा-अर्चना की। वहीं करम गीतों से अखाड़ा को जगाए रखा। बहनों का साथ भाइयों ने भी दिया। मांदर की थाप पर सभी थिरके।
झारखंड में इस पर्व की अलग महत्ता है। परन्तु इस वर्ष मानसून के दगा देने के कारण किसानों में खुशी नहीं दिखी। किसानों ने पुरानी परंपरा के कारण करमा पर्व को मनाया जरूर परन्तु बार-बार आसमान की ओर ताककर अपने-आप को कोसते नजर आए। यहां करमा को जावा पर्व भी कहा जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के मधुर संबंध का प्रतीक है। झारखण्ड में इस दिन का बड़ा ही महत्व है। इस दिन बोये हुए बीज से उत्पन्न फसल रोगमुक्त और समृद्ध दिखती है।
वास्तव में करमा पर्व जीवन में कर्म के महत्व को बताता है। यह कर्म को पूजा-पाठ ओर धर्म से ऊपर रखता है। करमा पर्व विशुद्ध रूप से कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। उन्होंने कहा कि करमा भाई-बहन के बीच प्यार व स्नेह का भी प्रतीक है। करमा पूजन की विधि की चर्चा करते हुए श्री उरांव ने कहा की करम गाड़ने के बाद कोठवार द्वारा समुदाय के लोगों को करम कथा सुनने के लिए बुलाया जाता है। श्रोता एवं उपासर अपने-अपने करम दौड़ या थाली में पूजन सामग्री तेल, सिंदूर, धूप-धुवन, खीरा, चीउड़ा, जावा फूल, अरवा चावल, दूध, फूल, फल सजाकर इसमें दीपक जलाते है। इसके सारू पत्ते से ढककर अखाड़ा में लाते है और करम के चारों ओर बैठ जाते है। दूसरी ओर करम अखाड़ा में चारों ओर भेलवा, सखुआ या केंद इत्यादि लाकर खड़ा कर दिया जाता है। कथा अंत होने के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है। युवक-युवतियां करमा नृत्य संगीत प्रस्तुत करती है। दूसरे दिन सुबह भेलवा वृक्ष की टहनियों को धान की खेती में गाड़ दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे फसल फसल में कीड़े नहीं लगते है। श्री उरांव ने कहा कि करमा अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग विश्वास एवं मान्यता के साथ मनाया जाता है।
- बहनों ने रखा नौ दिन तक व्रत
मनसा पूजा समाप्त होते ही करम गीत की शुरूआत हो जाती है। इस त्योहार में बहनें भादो माह के शुक्ल पक्ष में तृतीया से एकादशी तक व्रत रखती है। बांस की बनी छोटी-छोटी टोकरी जिसे कुड़माली में 'टुपा-डाली' कहते है। इसे लेकर युवतियां जलाशय, झरना, नदी अथवा तालाब में जाकर स्नान के बाद बालू भरकर उसमें नौ तरह के तेलहन-दलहन के बीजों को बोती हैं। डाला के बीचों-बीच एक सखुआ की खूंटी गांव के मालिक महतो परिवार की युवती गाड़ती है। इस खूंटी को मूल खूंटी (महतो खूंटी) के नाम से जाना जाता है। डाला के मूल खूंटी के चारों ओर अधिक-से-अधिक नौ खूंटी गाड़ी जाती है। जो नवग्रह एवं बीच की खूंटी को सूर्य का प्रतीक माना जाता है। नदी के किनारे से गांव के करम अखाड़ा तक आते वक्त नौ स्थान पर इस डाला को रख कर चारों ओर से नाच-नाच कर युवतियां करम गीत गाती है।
- 'नाया' ने गाड़ी करम डाली
व्रत करने वाली नवयुवती एवं महिलाएं दूध, दही, गुड़, नमक एवं साग नहीं खाती है। एकादशी की रात में एक करम पेड़ की डाली को करम अखाड़ा में गांव के 'नाया' ने गाड़ा। वहीं रात को महिला-पुरुष, युवक-युवतियां नाच-गान के द्वारा अखाड़ा को जगाए रखा। करम डाली से बहन अपने भाई के दीर्घायु होने की कामना को लेकर दोड़ी एवं बेना से निर्मित अतिसुन्दर कांगन करम डाली में बांधा। आज इस कंगन को भाई के बांहों में बांधा जाएगा।
-आज होगा जावा डाली का विसर्जन
रात भर अखाड़ा को जगाए रखने के बाद आज द्वादश की सुबह बहनें विभिन्न गीतों के साथ जावा डाली का विसर्जन करेगी। बहनें अपने-अपने क्षेत्र के जलाशयों में विसर्जन करने के बाद व्रत तोड़ेगी।
( जागरण से साभार )
sangeeta ji aapne mere post ko padha.aur jo sujhaw diye usake liye aap ka yeh chhota bhai,bahut-bahut aabhar byakta karata hai.maine aap ki bokaro ke parw ko padha .bahut achhalaga,waise bokaro ke bare me janane ki hamesa utasukta rahati hai. dhanybad.
ReplyDeleteLok se aapk judav chamtkrat karta hai.
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यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
अति सुन्दर भाषा शैली के साथ साथ इस सुन्दर जानकारी केलिए आप को सुभकामनायें ....और साथ ही रांची के इस बोकारो जिले की भूरी भूरी प्रशंशा के लिए भी ....आशा करता हूँ इसी तरह निरंतर लिखते रहेंगी तो अवस्य ही एक दिन कामयाबी आपके कदम चूमेंगे.....
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