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रोहन में बीज डालने के बाद फसल में कीड़े नहीं लगते है !!

बोकारो जिले के कसमारपेटरवार और जरीडीह समेत आस-पास के क्षेत्र में मंडरा रही दुर्भिक्ष की काली छाया को देख कर किसानोंमजदूरों एवं आम जनता में त्राहिमाम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. खेती किसानी की परंपरागत तकनीक पर विश्वास करें,तो रोहन यानी रोहिनी नक्षत्र के प्रवेश करते ही किसान अपने-अपने खेतों में धान के बीज डाल देते थे. इसमें यह मान्यता है कि रोहन में बीज डालने के बाद फसल में कीड़े नहीं लगते है. पिछले कई वषरे से लगातार सुखाड़ की मार ङोल कर किसानों की कमर टूट चुकी है.

इस वर्ष भी  स्थिति कुछ ऐसी ही है. मॉनसून का प्रवेश तो धमाकेदार हुआ
लेकिन दो दिन बूंदा-बांदी कर ऐसा रुठा कि वापस आने का नाम ही नहीं ले रहा है. गांव में किसान रोज पूजा-पाठ कर  इंद्र भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश में  जुटे है. बारिश भले ही न हो,लेकिन बादल रोज आसमान में उमड़ रहे है. इधर देर-सबेर बिहन डालने के बाद धान के बीचड़े जो खेतों में उग आये थे. उसकी हरियाली पर अब धीरे-धीरे पीलापन की परत चढ़ने लगी है. ऐसे में क्षेत्र के किसानों में संशय की स्थिति उत्पन्न हो गयी है.

इसके अलावा इस वर्ष वर्षा के आभाव में एवं तेज गरमी से प्राय सभी परंपरागत सिंचाई के साधन नदी-नाले तालाब
डांडी व कुएं सूख गये है.खत्म हो गये है धान के परंपरागत बीजआज से 15-20 वषरे पूर्व तक जो भी किसान खेती करते थेवो परंपरागत बीजगोबर से बना खाद व खेती-बारी की सारी व्यवस्था पूर्णत देशज विधि पर निर्भर थी.

हाल के वषरे में खेती पर नयी तकनीक व हाइब्रिड के बीजों का समावेश होता गया. वैसे ही हमारे परंपरागत बीज
खाद व देशज पद्धति प्राय समाप्त ही हो गये हैं. खास कर क्षेत्र के किसानों के पास  उस वक्त सौ से अधिक किस्म के धान के बीज बचे थे. लेकिन वर्तमान समय में अब एक भी प्रकार के धान के परंपरागत बीज उनके घरों में नहीं है. आज की खेती किसानी पूर्णत बाजार पर निर्भर है.

खत्म होनेवाले धान के परंपरागत बीज खत्म होनेवाले धान बीजों के  नाम हैं - हथिया साइल
,बाघ पांजरकोया धानडैडकी साइललाल मोटा धानहरदी साइलजोंग धानसोना धूसरी,कारी बाकीगोविंद भोगसमुद्री धानसीता साइलकुमरा साईलझिंटी साइलखैरका खोची,चरकी राइसकरहनीजोनरा साइलमालयर धानप्रसाद भोगबादशाह भोगबरहा साइलकतकी साइलपूर्वी साइल.
(प्रभात खबर के सौजन्‍य से )

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