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Showing posts from February, 2010

अब आधुनिकता के चक्‍कर में बोकारो भी आ गया है !!

वैसे तो पूरा झारखंड ही प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण है , इसलिए बोकारो का महत्‍व तो है ही । इस सदी के उत्‍तरार्द्ध में हुए औद्योगिकीकरण ने बोकारो को भले ही एक नई पहचान दी हो , पर इस क्षेत्र के लोगों को कभी भी रोजी रोटी की समस्‍या से नहीं जूझना पडा। पुराने जमाने में जहां एक ओर यहां के खेत और बगान ग्रामीण गृहस्‍थों की जरूरत को पूरा करने में समर्थ होते थे , वहीं यहां के घने जंगल आदिवासियों की जरूरत भी। यही कारण है कि यहां के लोगों को कभी भी अपनी रोजी रोटी के लिए पलायन नहीं करना पडा। ऐसा भी नहीं कि यहां के खेत की मिट्टी बहुत ही ऊपजाऊ है , जो वर्षभर में कई फसल दे देती है। इस जिले में रबी की फसल तो होती ही नहीं , सिर्फ एक धान की खेती पर ही सबको गुजारा करना पडता है। बारिश अधिक होने के कारण एक फसल होना तो लगभग तय ही है। पहाडी क्षेत्र होने के कारण कुछ खेत काफी गहरे हैं , जो थोडे पानी में भी भर जाते हैं। अनावृष्टि के समय में भी उनसे कुछ फसल की उम्‍मीद हो जाती है। इसके लिए भी हर वर्ष खेत में खाद डालना आवश्‍यक होता है। वर्षभर के खाने का चावल हो जाए , तो साग, सब्‍जी या दलहन लोग...