Skip to main content

अब आधुनिकता के चक्‍कर में बोकारो भी आ गया है !!

वैसे तो पूरा झारखंड ही प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण है , इसलिए बोकारो का महत्‍व तो है ही । इस सदी के उत्‍तरार्द्ध में हुए औद्योगिकीकरण ने बोकारो को भले ही एक नई पहचान दी हो , पर इस क्षेत्र के लोगों को कभी भी रोजी रोटी की समस्‍या से नहीं जूझना पडा। पुराने जमाने में जहां एक ओर यहां के खेत और बगान ग्रामीण गृहस्‍थों की जरूरत को पूरा करने में समर्थ होते थे , वहीं यहां के घने जंगल आदिवासियों की जरूरत भी। यही कारण है कि यहां के लोगों को कभी भी अपनी रोजी रोटी के लिए पलायन नहीं करना पडा।

ऐसा भी नहीं कि यहां के खेत की मिट्टी बहुत ही ऊपजाऊ है , जो वर्षभर में कई फसल दे देती है। इस जिले में रबी की फसल तो होती ही नहीं , सिर्फ एक धान की खेती पर ही सबको गुजारा करना पडता है। बारिश अधिक होने के कारण एक फसल होना तो लगभग तय ही है। पहाडी क्षेत्र होने के कारण कुछ खेत काफी गहरे हैं , जो थोडे पानी में भी भर जाते हैं। अनावृष्टि के समय में भी उनसे कुछ फसल की उम्‍मीद हो जाती है। इसके लिए भी हर वर्ष खेत में खाद डालना आवश्‍यक होता है। वर्षभर के खाने का चावल हो जाए , तो साग, सब्‍जी या दलहन लोग अपने बागानों में ही लगा लेते है, जिसे सिंचाई के द्वारा भी उपजाया जा सके और इस तरह अपनी जरूरतों की पूर्ति करते हैं। अब तो चावल की बिक्री कर लोग गेहूं भी खरीदकर खाने लगे हैं।

गाय, बैल और बकरी पालना भी यहां बहुत कठिन नहीं होता और खानेभर दूध , दही के लिए लोगों को कोई दिक्‍कत नहीं होती। यहां छोटे नस्‍ल के मवेशी पाए जाते हैं , जिनको बांधकर संभालने की जिम्‍मेदारी दो तीन महीने की खरीफ के फसल के समय में ही होती है। बाकी समय तो यहां के मवेशी खेतों में खुले घुमते रहते हैं और घास वगैरह खाकर आराम से घर वापस आ जाते हैं। वैसे दो चार चरवाहे सारे गांव या मुहल्‍ले के मवेशियों को ले जाकर दिनभर जंगल से घुमाकर ले आते है।  इस तरह उन्‍हें खिलाने पिलाने और साफ सुथरा करने की जिम्‍मेदारी बहुत थोडी होती है। जलावन के लिए पहले लोग जंगल की लकडी और कुछ दिन बाद कोयले का प्रयोग करने लगे।

यहां की जमीन बहुत ही पथरीली है , ऊपर के डेढ फुट ,जिसका उपयोग खेती के लिए किया जाता है , वो कुछ ठीक है, क्‍यूंकि उसमें भी रेत की बहुत मात्रा होती है। नीचे की जमीन इतनी कडी है कि पेडों की जडें भी अधिक अंदर न जाकर चौडाई में फैलती हैं। इसलिए आंधी और तूफान में बहुत पेड गिर भी जाते हैं। पर यहां की मिट्टी से बननेवाले घर भी बहुत मजबूत होते हैं , पक्‍के मकान में भी नींव कम डालने की आवश्‍यकता होती है। यहां तक कि स्‍थानीय पद्धति से ईंट बनाकर मिट्टी से उन्‍हें जोडते हुए दीवाल तैयार कर सिर्फ छत की ढलाई में छड और सीमेंट का प्रयोग करते सामान्‍य लोग भी पक्‍के का मकान बना लेते हैं।

यहां पहले गर्मी अधिक नहीं पडती थी ,बरसात और ठंड खूब पडता था, अब मौसम में कुछ परिवर्तन आया है।यहां के लोग बहुत सीधे सादे और संतोषी होते हैं , जाति पाति और धर्म के संघर्ष की अधिक कहानियां इधर सुनने को नहीं मिलती हैं। सब रूखा सूखा खाकर भी संतुष्‍ट रहने की कोशिश करते हैं। पुरूषों की अपेक्षा यहां की महिलाएं अधिक मेहनती होती हैंऔर घर को चलाने में उनकी भूमिका मुख्‍य होती हैं। तिलक , दहेज या अन्‍य कुरीतियों का प्रचलन बहुत कम है , यहां नारियों को बहुत सम्‍मान मिलता है। लेकिन आधुनिकता के चक्‍कर में अब बोकारो भी आ गया है और कई कुरीतियां देखने को मिल रही हैं।

Comments

  1. बोकारो के साथ ये तो होना हि था ।
    लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


    सुप्रसिद्ध साहित्यकार व ब्लागर गिरीश पंकज जीका इंटरव्यू पढने के लिऐयहाँ क्लिक करेँ >>>>
    एक बार अवश्य पढेँ

    ReplyDelete
  2. बोकारो के बारे में जानना अच्छा लगा ..

    ReplyDelete
  3. जानकारी के लिए आभार।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete

Post a Comment

आपको ये लेख कैसा लगा ??

Popular posts from this blog

Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar

Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the society by a noble organization, the inspiration of Shree Jayant Muniji Maharaj under whose supervision the hospital was established way back in 1981. It was then, when He had finally decided to serve the needy persons of the Tribal area of Jharkhand after having wandered vast stretches of land throughout the country as a Jain Saint. Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu chikitsalaya Trust is mainly running the hospital in petarbar, a small place with mainly tribal and backward population located on the way from Bokaro to Ramgarh, as a huge organization well equipped with the latest technologies and facilities including the ones like Phocoemulsification, Corneal Grafting, B-Scanning and Laser Units. The financial needs and requirements of the organizationare readily satisfied by the donations in the state, country and abro...

बोकारो जिले का नक्‍शा

इसे बडे रूप में देखने के लिए इसे दूसरे विंडों में खोलें  .......

Gatyatmak Jyotish app

विज्ञानियों को ज् ‍ योतिष नहीं चाहिए, ज् ‍ योतिषियों को विज्ञान नहीं चाहिए।दोनो गुटों के झगडें में फंसा है गत् ‍ यात् ‍ मक ज् ‍ योतिष, जिसे दोनो गुटों के मध् ‍ य सेतु का काम करना है। ऐसे में गत्यात्मक ज्योतिष द्वारा समाज में ज्ञान के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम में आम जनता ही सहयोग कर सकती है .. जीवन में सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक वातावरण का प्रभाव होता है और उनके हिसाब से सब जीवन जीते हैं। साथ ही इनसे लडकर खुद, परिवार या समाज के अन् ‍ य लोगों के मेहनत से जो उपलब्धियां आप हासिल करते हैं, वह आपका अपना कर्म होता है। यह हमलोग भी मानते हैं। पर लोगों के मन में ज् ‍ योतिष के प्रति गलत धारणा होती हैं। लोग यह नहीं समझते कि उनके सामने अच्छी या बुरी परिस्थितियां उत् ‍ पन् ‍ न होती हैं, वह ग्रहों का ही परिणाम होता है। हमारा एप्प आपको दो या तीन दिनों तक वही परिणाम दिखाता है, जो आसमान के खास भाग में विभिन् ‍ न ग्रहों की स्थिति के कारण उपस्थित होते हैं और इसके कारण लोगों को किसी न किसी प्रकार की ख़ुशी या परेशानी का सामना करना पडता है। कभी इन दिनों में कोई काम मनोनुकूल...