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Showing posts from 2011

लुगू बुरु घांटा बाड़ी धोरोम गाढ़ ... संथालो के आराध्य देव लुगु बुरु की पूजा का स्‍थल

बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत ललपनिया में स्थित आदिवासियों का ऐसा धाम है , जहां जाना हर संताड़ (आदिवासी) की ख्वाहिश होती है। प्रतिवर्ष  कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां संताड़ों का जुटान होता है , यह मौका होता है लुगु बुरु घांटा बाड़ी धोरोम गाढ़ (पर्वत) में होने वाला महाधर्म सम्मेलन का।  इस महाधर्म सम्मेलन में देश के कोने-कोने से महिला-पुरुष हजारों फीट की ऊंचाई पर स्थित लुगु बाबा मंदिर पहुंचते है और वहा पूजा कर धर्म सम्मेलन में भाग लेते हैं। लुगु पर्वत की तलहटी में लुगू बुरु घटा बाड़ी धोरोम गाढ़ की स्थापना  30  नवंबर  2007  को की गयी ,  ताकि लुगु पर्वत पर चढ़ने का सुगम रास्ता बनाया जा सके।  इसमें न सिर्फ झारखंड के संताड़ (संथाल) अपने आराध्य देव लुगु बुरु की पूजा , बल्कि ओड़िशा , बंगाल , बिहार , छत्तीसगढ़ के संताड़ भी यहां पहुंच लुगु बुरु (पर्वत) की गुफा में स्थित देव को नमन करते हैं। हर साल लुगु बुरु महाधर्म सम्मेलन में जाने वाले सरजामदा (जमशेदपुर) के माझी बाबा जयशंकर टुडू बताते हैं कि लुगु बुरु धोरोम गाढ़ संतालियों के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। उनका मानना है कि नि:स्वार

अंग्रेजी हुकूमत में बोकारो स्थित झुमरा पहाड़ी पर होती थी चाय की खेती ....

बोकारो स्थित झुमरा पहाड़ पर माओवादियों के विरुद्ध पिछले दिनों पुलिस द्वारा चलाए गए ऑपरेशन शिखर में माओवादियों ने जहां करीब चार हजार राउंड गोलियां चलायीं, वहीं कोबरा बटालियन, झारखंड जगुआर, सशस्त्र जिला बल के जवानों, पुलिस पदाधिकारियों एवं सीआरपीएफ के जवानों ने एके 47 रायफल से 2 हजार 171 राउंड, इंसास से 396 राउंड, एसएलआर से 158 राउंड तथा 9 एमएम पिस्टल से 25 राउंड गोलियां चलायीं। पुलिस फोर्स ने एके 47, इंसास, एसएलआर, 9एमएम पिस्टल, राइफल, ग्रेनेड, एसजी राइफल, यूडीजीएल आदि हथियारों का प्रयोग किया। आज जहां नक्सलियों और पुलिस के मुठभेड़ के बाद गोलियों की केवल तड़तड़ाहट सुनाई दे रही है, उसी झुमरा पहाड़ी पर गुलाम भारत में उन्नत चाय की खेती होती थी। देश आजाद हुआ तो डालमिया उद्योग की ओर से बनने वाले अशोका ब्रांड पेपर के लिए यहां से बांस जाने लगा। चाय व बांस की खेती के लिए रामगढ़ समेत आस-पास के ग्रामीणों को मजदूरी करने के लिए यहां लाकर बसाया गया। कागज उद्योग बंद होने के बाद मजदूरी करने आए लोग यहीं बस गए। उस समय यहां रोजगार के साधन नहीं थे। फलस्वरूप लोग बकरी व मुर्गी पालन कर जीविका चलाने लगे। सड

अंग्रेजों ने बर्मा जीतने के लिए चास (बोकारो)को बनाया था प्रशिक्षण स्थल ...

  द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बोकारो, चास और आसपास के क्षेत्र सैनिक गतिविधियों के महत्वपूर्ण केन्द्र रहे। यहां थलसेना के 81 वेस्ट अफ्रीकन डिविजन, 5 माउंटेन डिविजन एवं अमेरिकी वायु सेना के 444 वें बंबार्डमेंट ग्रुप ने प्रशिक्षण हासिल किया। सभी सैनिक बर्मा में लेफ्टिनेंट जेनरल स्टिलवेल के नेतृत्व में लड़ रही मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेना की करारी हार के बाद यहां लाए गए थे। आजाद हिन्द फौज एवं जापानी सेना ने मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेना को पीछे धकेल दिया था। चास में वेस्ट अफ्रीकन डिविजन का था कैंप : चास में 81 वेस्ट अफ्रीकन डिविजन के करीब 40 हजार सैनिकों को जंगलों में युद्ध करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया। उन्हें प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी 5वीं भारतीय डिविजन को सौंपी गयी थी जिसका नेतृत्व मेजर जेनरल हेराल्ड राडन ब्रिग्स कर रहे थे। इस डिविजन को इटालियन, जर्मन सेना, इरिट्रिया, अबीसिनिया तथा अफ्रीका के पूर्वी रेगिस्तान में जंगल में लड़ने का अनुभव था। औपनिवेशिक नीति के तहत अंग्रेजों ने बर्मा जीतने के लिए चास को प्रशिक्षण स्थल के रूप में तब्दील कर दिया। बोकारो का इतिहास