शीर्षक पढ़ कर चौंकना लाजिमी है! मगर धार्मिक मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम त्रेता युग में बोकारो आये थे. हालांकि त्रेता युग में बोकारो का क्या स्वरूप रहा होगा, इसकी कल्पना मात्र की जा सकती है.
बावजूद इसके वर्तमान बोकारो के विभिन्न स्थलों पर उनके आने के अलग-अलग प्रसंग की जनश्रुतियां हैं. इन सभी स्थलों का विशेष धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व है. यूं कहें, इन्हें धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है. मुख्यत: जिले के तीन स्थलों पर भगवान श्रीराम के आने की मान्यता है. इनमें दो स्थल कसमार व एक चास प्रखंड में है.
बारनी घाट में किया था स्नान : चास-धनबाद मुख्य पथ पर पानी टंकी से करीब 10 किमी दूर पूरब दिशा स्थित कुम्हरी पंचायत में दामोदर नदी पर बारनी घाट है. कहा जाता है-वनवास के दौरान पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम कुम्हरी होकर गुजरे थे.
वह वनवास का 12वां वर्ष और चैत माह की 13वीं तिथि थी. रात्रि विश्राम के बाद सुबह रवाना होने से पहले भगवान राम ने पत्नी व भाई के साथ बारनी घाट में स्नान किया था. इसे पकाहा दह के नाम से भी जाना जाता है. ग्रामीणों के अनुसार, लगभग दो हजार वर्ग फ़ुट में फ़ैले इस दह की गहराई का लगाना मुश्किल था. अब गहराई काफ़ी कम है. हालांकि, भीषण गरमी और सुखाड़ में भी इसमें लबालब पानी रहता है.
कई पौराणिक पत्थर और चरण पादुका भी हैं. इसे भगवान राम के होने की बात कही जाती है. इस स्थल का महत्व हरिद्वार, त्रिवेणी और पुष्कर की तरह है. जिस तिथि को श्रीराम ने यहां स्नान किया था, प्रत्येक साल उस तिथि में स्नान करने श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं. लोगों का मानना है कि इससे पुण्य की प्राप्ति और पितरों को मुक्ति मिलती है.
मृग खोह में स्वर्ण मृग की तलाश : कसमार प्रखंड की मंजूरा पंचायत में राम-लखन टुंगरी व हिसीम पंचायत में डुमरकुदर गांव के पास मृग खोह स्थित है. दोनों जगहों पर श्रीराम के आने का प्रसंग एक-सा है. कहा जाता है-माता जानकी की जिद पर स्वर्ण मृग की तलाश में भगवान राम इन दोनों जगहों पर आये थे. मृग खोह की पहाड़ी पर जिस जगह तीर चलाये थे, वहां से दूध की धारा निकल पड़ी थी.
कहा जाता है, एक चरवाहा की शरारत के कारण दूध धारा पानी में तब्दील हो गयी. यहां दो जगहों पर भगवान राम के पदचिह्न हैं. पहाड़ी के कुछ नीचे हिस्से पर स्थित पदचिह्न पर मंदिर का निर्माण हुआ है.
दूसरा पदचिह्न पहले से करीब 200 फुट की ऊंचाई पर है. यहां प्रत्येक साल मकर संक्रांति पर विशाल टुसू मेला लगता है. मरीच वध का आयोजन होता है. राम-लखन टुंगरी के बारे में भी ठीक ऐसी ही मान्यता है.
यहां भी पदचिह्न पर मंदिर का निर्माण हुआ है. पहाड़ी की एक बड़ी चट्टान, जहां तीर टकराया था, पर से जल धारा निकलती है. इन स्थलों पर सालों भर लोग दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं. दूसरी ओर, उक्त तीनों स्थलों के विकास के लिए सरकारी स्तर पर काम नहीं हुआ है.
दीपक सवाल
'प्रभात खबर' से साभार
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