बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत ललपनिया में स्थित आदिवासियों का ऐसा धाम है , जहां जाना हर संताड़ (आदिवासी) की ख्वाहिश होती है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां संताड़ों का जुटान होता है , यह मौका होता है लुगु बुरु घांटा बाड़ी धोरोम गाढ़ (पर्वत) में होने वाला महाधर्म सम्मेलन का। इस महाधर्म सम्मेलन में देश के कोने-कोने से महिला-पुरुष हजारों फीट की ऊंचाई पर स्थित लुगु बाबा मंदिर पहुंचते है और वहा पूजा कर धर्म सम्मेलन में भाग लेते हैं। लुगु पर्वत की तलहटी में लुगू बुरु घटा बाड़ी धोरोम गाढ़ की स्थापना 30 नवंबर 2007 को की गयी, ताकि लुगु पर्वत पर चढ़ने का सुगम रास्ता बनाया जा सके। इसमें न सिर्फ झारखंड के संताड़ (संथाल) अपने आराध्य देव लुगु बुरु की पूजा , बल्कि ओड़िशा, बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ के संताड़ भी यहां पहुंच लुगु बुरु (पर्वत) की गुफा में स्थित देव को नमन करते हैं।
हर साल लुगु बुरु महाधर्म सम्मेलन में जाने वाले सरजामदा (जमशेदपुर) के माझी बाबा जयशंकर टुडू बताते हैं कि लुगु बुरु धोरोम गाढ़ संतालियों के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है। उनका मानना है कि नि:स्वार्थ भाव से यहा पूजा-अर्चना करने से लुगु बाबा की कृपा से सारी मन्नतें पूरी होती हैं। यहां भारत के अलावा नेपाल एवं बाग्लादेश से भी संताड़ी समुदाय के लोग आते हैं और लुगु पहाड़ की हजारों फीट ऊंचाई चढ़कर लुगु बाबा की पूजा-अर्चना करते हैं। पूर्व नायके (पुजारी) रहे जमशेदपुर के कन्हाई बेसरा बताते हैं कि लुगु बुरु संतालियों के आराध्य देव हैं और इनकी पूजा लुगु पहाड़ की गुफा में आर्यो के आने के पहले से ही की जाती रही है। संताड़ (आदिवासी) समुदाय के पूर्वज इसी स्थान पर रहते थे। लुगु पहाड़ की तलहटी में पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाए गए कई अवशेष आज भी विद्यमान हैं।
सनातन धर्म में मान्यता है कि जब किसी हिन्दू की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थि को बनारस जाकर गंगा में प्रवाहित किया जाता है, ठीक उसी प्रकार झारखंड समेत तमाम इलाकों के संताड़ समुदाय के लोगों की जब मृत्यु होती है तब उसके अस्थि को रजरप्पा की दामोदर नदी में प्रवाहित किया जाता है। लुगु बाबा के संबंध में कई पौराणिक गाथाएं भी हैं तथा उनपर कई लोकगीत भी गाए जाते हैं। पिछले वर्ष मुख्य अतिथि गुरु गोमेक चैरिटेबल ट्रस्ट राउरकेला से आये घासीराम सोरेन ने कहा कि सरना धर्म मानने वालों की आबादी अन्य धर्मो के मानने वालों से काफी अधिक है, परंतु प्रचार-प्रसार के अभाव में आज उपेक्षित है। उन्होंने कहा कि देश में 9 करोड़ से भी अधिक सरना धर्म को मानने वाले हैं।
यहां अध्यक्षता कर रहे बाबूचंद बास्के ने कहा कि सरना धर्म व हिन्दु धर्म में समानता है, फिर भी यह धर्म उपेक्षित है। उन्होंने इस धर्म को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में जनजागरण अभियान चलाकर प्रचार-प्रसार करने की बात कही। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिए नीति निर्धारण किया गया। इस दौरान राउरकेला, रांची, हजारीबाग व जमशेदपुर के अलावा अन्य कई स्थानों के सरना धर्म के कई अगुवा एवं प्रचारकों ने भाग लिया। इस अवसर पर हेमंतों हेम्ब्रम, दुशारान किस्कु, गजेन्द्र किस्कु, वीरेन्द्र भगत, अनूप कुमार किडो, अनिल हांसदा, सुरेन्द्र मुर्मू, लालकिशुन मांझी, लादूराम सोरेन, संजय हांसदा, करमचंद दिया, विराम हांसदा, सुनील पाहन, शिव कच्छप, धनेश्वर हांसदा, चरकु मरांजी, भगत मार्डी, सुशीला देवी, तालो देवी सहित सैकड़ों लोगों की उपस्थिति रही। जबकि संचालन व धन्यवाद ज्ञापन विराम हांसदा ने किया।
( जागरण से साभार )
यह लेख बहुत अच्छा लगा, संथालों के विषय में जानकारी मिली। आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख, नयी जानकारी... आभार...
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