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Showing posts from 2012

Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar

Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the society by a noble organization, the inspiration of Shree Jayant Muniji Maharaj under whose supervision the hospital was established way back in 1981. It was then, when He had finally decided to serve the needy persons of the Tribal area of Jharkhand after having wandered vast stretches of land throughout the country as a Jain Saint. Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu chikitsalaya Trust is mainly running the hospital in petarbar, a small place with mainly tribal and backward population located on the way from Bokaro to Ramgarh, as a huge organization well equipped with the latest technologies and facilities including the ones like Phocoemulsification, Corneal Grafting, B-Scanning and Laser Units. The financial needs and requirements of the organizationare readily satisfied by the donations in the state, country and abro

बोकारो आये थे भगवान श्रीराम ! .. - रामनवमी पर विशेष -

शीर्षक पढ़ कर चौंकना लाजिमी है! मगर धार्मिक मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम त्रेता युग में बोकारो आये थे. हालांकि त्रेता युग में बोकारो का क्या स्वरूप रहा होगा, इसकी कल्पना मात्र की जा सकती है. बावजूद इसके वर्तमान बोकारो के विभिन्न स्थलों पर उनके आने के अलग-अलग प्रसंग की जनश्रुतियां हैं. इन सभी स्थलों का विशेष धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व है. यूं कहें, इन्हें धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है. मुख्यत: जिले के तीन स्थलों पर भगवान श्रीराम के आने की मान्यता है. इनमें दो स्थल कसमार व एक चास प्रखंड में है. बारनी घाट में किया था स्नान : चास-धनबाद मुख्य पथ पर पानी टंकी से करीब 10 किमी दूर पूरब दिशा स्थित कुम्हरी पंचायत में दामोदर नदी पर बारनी घाट है. कहा जाता है-वनवास के दौरान पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम कुम्हरी होकर गुजरे थे. वह वनवास का 12वां वर्ष और चैत माह की 13वीं तिथि थी. रात्रि विश्राम के बाद सुबह रवाना होने से पहले भगवान राम ने पत्नी व भाई के साथ बारनी घाट में स्नान किया था. इसे पकाहा दह के नाम से भी जाना जाता है. ग्रामीणों के अनुसार, लगभग दो हजार वर्ग

बोकारो के इमरान जाहिद ..निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट की फिल्म जिस्‍म दो में मुख्‍य भूमिका में

बोकारो के इमरान जाहिद न तो इंजीनियर बनना चाहते थे और न ही डॉक्टर। वे कुछ अलग करना चाहते थे। स्कूल के दिनों में वे फिल्म देखते थे, बस यहीं से फिल्मी हीरो बनने की धुन सवार हो गयी। मेहनत व लगन की बदौलत इस छोटे से शहर से निकल कर फिल्मी जगत में कदम रख दिया। प्रख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट की फिल्म जिस्म दो में इमरान मुख्य भूमिका में हैं। इनके साथ सनी लियोन, रणदीप हुडा व अरुणोदय सिंह भी इस फिल्म में काम कर रहे हैं। 1 अप्रैल को फिल्म की शूटिंग जयपुर में शुरू होगी। इमरान जाहिद ने दूरभाष पर जागरण को बताया कि डीएवी पब्लिक स्कूल सेक्टर चार से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे दिल्ली गए। यहां हिन्दू कॉलेज से बीकॉम आनर्स किया। इसके बाद यहां मास कम्युनिकेशन सेंटर खोला। थियेटर में इनकी रुचि बनी रही। पांच वर्ष पूर्व दुबई में महेश भट्ट से भेंट हुई। श्री भट्ट ने इनकी काबिलियत को परखा और अपने नाटक लास्ट सैल्यूट में जगह दी। इमरान ने इस नाटक में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश के ऊपर जूता फेंकने वाले मुन्तजर अल जैदी की भूमिका अदा की। दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई सहित देश के अन्य शहरों में इस

जनता का भगवाने मालिक है.... राजकुमारी

  हालांकि उनकी भाषा आम किन्नरों की तरह ही ठेंठ है. वह वैसी फूहड़ कही जानेवाली उपमा देती है और कहावत, मुहावरों का इस्तेमाल करतीं हैं जो सभ्य समाज के लोगों को नहीं पचे. उनका खास अंदाज में बात बिना बात के तालियां बजाना आपको नागवार लग सकता है, पर उनके काम को देख कर सोचना पड़ता है कि जिसे समाज ने हासिये पर डाल दिया, उसकी शारीरिक कमी को उपहास का शब्द बना दिया, उसमें समाज के प्रति इतना दर्द है तो क्यों. वह है राजकुमारी. बोकारो के रितूडीह में रहती हैं. रितूडीह के लोगों की हर जरत के समय खड़ी होती है. समाज से मिले बधाई के पैसे से वह मौज नहीं करती. उसने तीन-तीन अनाथ कही जानेवाली लड़कियों को पाला. उन्हें बड़ा किया. उनकी शादियां रचायी. उनके तीनों दामाद भी बेरोजगार हैं. उनका और उनके बच्चों का पालन-पोषण वह कर रही है. उनकी तीन बेटियों की तरह बेटा भी है. वह भी बेरोजगार है. नाती-पोते से भरा परिवार है. सबकी देखभाल वह करती है. सरकार से कुछ मदद नहीं लेतीं? सुनते ही वह भड़क जाती हैं. कहतीं हैं, कौना सरकार जी.. 12 साल होता झारखंड बनल, कतना-विधायक मिनिस्टर बनलन का भइल. सब कमा खा के लाल बाड़न. जनता बेहाल बिया

झारखंड की गौरवशाली शिल्पकला ......

शिल्पकला की परंपरा भारत के इस पूर्वी क्षेत्र में झारखंड की सभ्यता-संस्कृति का गौरव है. झारखंड की शिल्पकला के काफ़ी उन्नत होने के बावजूद यहां के शिल्पकारों को उस तरह की प्रसिद्धि नहीं मिली, जिनके वे हकदार हैं. झारखंड की शिल्पकलाओं और शिल्पकारों की उन्नति के लिए झारखंड बनने के बाद सरकार की ओर से जिस तरह की सहायता की अपेक्षा की गयी, वैसा कुछ नहीं हुआ. इस कारण यहां की शिल्पकला को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह का स्थान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. इन शिल्पकलाओं को जरूरत है, तो आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन की. इसके अभाव में झारखंड की शिल्पकलाएं आज लुप्त होने के कगार पर हैं. पारंपरिक काष्ठकला राज्य की विभिन्न शिल्प कलाओं में लकड़ी के शिल्प (काष्ठकला) का महत्वपूर्ण स्थान है. आज इसे लोग भूलते जा रहे हैं. झारखंड के जंगलों में पहले लकड़ी भरपूर मात्रा में उपलब्ध हो जाया करती थी. लकड़ियों की उपलब्धता के कारण लोग काफ़ी संख्या में लकड़ी की वस्तुओं का निर्माण करते थे. वहीं आज लकड़ियों की किल्लत की वजह से लकड़ी की वस्तुएं कम बन रही हैं. झारखंड में बनी वस्तुओं के निर्माण में ज्यादातर अच्छ